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नोट बंदी पर बिही बेचने वाली काकी की story


हर सुबह की तरह मै अपने कार्य पर तेजी से जा रहा था। 3 डिग्री की गलन वाली ठंड में कार के शीसे बंद थे फिर भी ठंड का एहसास तो हो ही जाता था । हीटर चलाने से घुटन होती है इसलिये उसे avoid करता हॅू। रोज की तरह आज मै बूढी काकी को रोड पर नहीं पाकर आश्चर्य चकित था क्योकि हमेशा से कुछ ना कुछ सीजनी सब्जिया बगीचे के फल उसे रोड पर बेचते देखता पाता था जो मैं सुबह रोज काम पर जाते समय देखता और उसे लगभग शाम तक घुॅधलके होते तक उठ जाते हुये पाता था। आज उसे रोड के किनारे सामान सब्जिया का ढेर लगाये और बेचते नहीं पाकर कुछ सोचता रहा कि शायद आज की ठंड ने उसे परास्त कर दिया होगा कि कुछ उपर सूरज देव आ जाये फिर वह अपना मजमा लगा सके । इसी तरह जब उसे दो तीन नहीं पाया तो मैने कुछ आगे जाकर गाडी रोकी और लघुशंका के बहाने मैने वहॅा थोडी देर तक खडा रहा और आसपास के गुजरते ग्रामीणो सक उसके बारे में पूछा तो ज्ञात हुआ कि बूढी काकी काफी बिमार थी और उसके नाती जो उसकी देखभाल करते थे और गॅाव में ही कच्चे मकान मे रहते थे के पास गया । पूछा तो जानकारी मिली की ग्राम में देख भाल करने वाले झोला छाप डाक्टर की दवा चल रही है और वो भी उधार में कुछ महगी दवाई को नही खरीद पा रही है क्योकि वो भी नोटबंदी के चलते उधार में नहीं मिल पा रही है।मैने घर की खाट पर पडी काकी से पूछा कि आजकल धनिया साग नहीं बेच रही हो ? काकी अपनी धुधली शक्ति से पहचानते हुये बोली की अरे बाबू जी पहले जान तो बचा लू फिर बेचने आउंगी साग भाजी।डाक्टर तो उधार पर इलाज कर रहा है पर दवाई महगी वाला उधार नहीं मिल रहा है। मैं चुपचाप उसे देखता रहा कि शायद वह कुछ कहे पर उसकी खुद्यारी उसे नही बोलने पर विवश कर रही थी। मैने पूछा दवा कितने की है उसने कहा कि पता नही । मेरी हालत और औकात अभी उससे पूछने की नही हुई क्योकि पेटरोल भराने की नगदी तो मेरे पास भी नही हुआ करती है इन दिनो । अचानक मेरे अंदर का इंसानी जागा कि इस कर्मठ बूढी जान के लिये यदि मैं अपनी ओर से कुछ कर सकता हू तो इसी समय करना होगा क्योकि ऐसी बार बार नही आती कि हम उसे परीक्षा जैसे उसका इंतजार करते रहे।होटल में जबरदस्ती के शान बघारते हुये वेटर को टिप देने के बजाय आज कुछ इंसानी करने का तूफान उठने लगा। मैने उसके नाती को कहा चल मेरे साथ मेडिकल शाप ।और वहॅा जाकर मैनें मेडिकल वाले को अपना वास्ता दिला कर बतौर चेक बुक निकाल कर एक चेक फाड कर दिया कि यदि मै एक सप्ताह के अंदर आपको पैसे नही दे सका तो इसको लगा देना । मेडिकल वाला बोला हमे इतनी दौड भाग की फुर्सत नही है पर आपके जज्बे के कारण मैं भी एक रिस्क आपकी खातिर और देश के खातिर ले सकता हॅू और दवाई दे दी । तीसरे दिन मैने पैसे नोट की प्राप्ति करके उससे अपना चेक लौटा लिया क्योकि मेडिकल वाला चेक नहीं चाहता था केवल पैसे पर ही विश्वास करता था। अंत भला तो सब भला ।बूढी काकी अब चलने लगी है और कुछ ही दिनो में सब नारमल हो जायेगा। मेरे देश और करेंसी की तरह सब चलने लगेगे और इस मुसीबत में हम सबको साथ साथ चला सकेंगे।इस जीवन में ही हम इस आपदा को सहने की प्रबंधन बनाना होगा दोस्तों और अपने इस करेंसी और चिल्हर नोट से सबकी मदद करना चाहिये आखिर हमारे नेता इस कडवी दवा को हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिये ही हमें पिला रहे है। उम्मीद करते है कि आगे स्वर्णिम दिन आयेगा।


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